वरिष्ठ एवं प्रसिद्ध लेबनानी-अमेरिकी कलाकार, कवि खलील जिब्रान की डर यह एक अनुवादित लोकप्रिय हिन्दी कविता है।
 
कहा जाता है कि समुद्र में प्रवेश करने से पहले नदी भय से कांपती है...
कहा जाता है कि समुद्र में प्रवेश करने से पहले नदी भय से कांपती है। वह पीछे मुड़कर उस रास्ते को देखती है जिस पर वह चली है, पहाड़ों की चोटियों से लेकर जंगलों और गांवों को पार करती हुई लंबी घुमावदार सड़क तक। और उसके सामने वह इतना विशाल सागर देखती है कि उसमें प्रवेश करना हमेशा के लिए गायब हो जाने के अलावा और कुछ नहीं लगता। लेकिन कोई दूसरा रास्ता नहीं है नदी वापस नहीं जा सकती। कोई भी पीछे नहीं जा सकता अस्तित्व में पीछे जाना असंभव है। नदी को सागर में प्रवेश करने का जोखिम उठाना होगा, क्योंकि तभी भय समाप्त होगा, क्योंकि तभी नदी को पता चलेगा कि यह सागर में विलीन होने का नहीं, बल्कि सागर बन जाने का मामला है। - खलील जिब्रान

 
 
 
 
 
 
